विषय- नारी,स्त्री
दिनांक -11/06/2022
एक स्त्री के मन के भावों को,
जानें कोई क्यों समझता नहीं है।
उसके अंदर भी संवेदनाएं होती है,
ये किसी को क्यों दिखता ही नहीं है।।
रहती जब वह अपने पीहर में,
स्वच्छंद विचारों में विचरण करती है।
मां पिता और भाई बहनों के संग में,
खुलकर जीती और मौज करती है।।
छोड़कर जब वह अपनों को पीहर में,
ससुराल में अपना कदम रखती है।
एक नए किरदार में ढलकर वह,
अपने आपको पूर्णतः बदल लेती हैं।।
मायके में जो छोटी छोटी बातों पर,
जल्दी गुस्सा हो जाया करती थी।
ससुराल में कड़वी बातें सुनकर भी,
धीरे से वह मुस्कुराया करती थी।।
अगर जरा भी चोट लग जाए तो,
काम न करने का बहाना मिल जाता था।
ससुराल में गहरी चोट होने पर भी,
सारे काम को कर जाना पड़ता था।।
स्त्रियां भी कितनी कठोर और कोमल होती,
परिस्थितियां अनुसार ही ढल जाती है।
कभी बन जाती ढाल अपनों की,
तो कभी तलवार बनके सामने आती है।।
स्त्री मां का एक कोमल स्वरूप है,
जो सब पर अपना स्नेह है लुटाती।
देखे जो उसके अपनों को घूरके,
उन सबको उनकी वह औकात दिखाती।।
बात अगर अपनी मातृभूमि की हो,
तो सर्वस्व ही अपना लुटाती है।
देश सर्वोपरि है उनके लिए,
यह बात कहने से वह नहीं हिचकिचाती है।।
किरन झा (मिश्री)
ग्वालियर मध्य प्रदेश
-किरन झा मिश्री