मैं और मेरे अह्सास
आज ज़िंदगी की तलाश में निकल पड़े है l
जहां जहां कदम ले जा रहे हैं चल पड़े है ll
इश्क को इबादत समझता रहा ताउम्र l
आशिक को फकीर देख छल पड़े है ll
आज छत पर कपड़े सुखाते आए हुए l
हुश्न को बेपर्दा देख के बहल पड़े हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह