मैं और मेरे अह्सास

आज ज़िंदगी की तलाश में निकल पड़े है l
जहां जहां कदम ले जा रहे हैं चल पड़े है ll

इश्क को इबादत समझता रहा ताउम्र l
आशिक को फकीर देख छल पड़े है ll

आज छत पर कपड़े सुखाते आए हुए l
हुश्न को बेपर्दा देख के बहल पड़े हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111805707

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