मेरे अंतर्मन में उलझी हैं द्वंद्व भरी अट्टालिकाएँ ,
दोनों ही छोर मेरे, फिर कैसे मिटे ये दुविधाएँ ।
कर्म मेरा आराध्य है तो कुटुम्ब मेरा कर्तव्य ,
दोनों मेरे अभिन्न है फिर कैसे एक ही ध्यातव्य ।
नदिया के साहिल हैं दोनों, संग सदा ही चलना है ,
शीतल धारा बनकर ही दोनों का साथ निभाना है ।