मैं और मेरे अह्सास
माँ के बेटे को बद्दुआ नहीं लगती हैं l
कभी ज़माने की हवा नहीं लगती हैं ll
हमारे बेह्तरीन मुस्तकबिल के लिए l
अपनों ने दी हुईं सज़ा नहीं लगती है ll
मुहब्बत मे जरा सी छेड़खानी हुई l
बातों मे रूठना अदा नहीं लगती है ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह