Hindi Quote in Poem by shekhar kharadi Idriya

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उत्तर-पूर्व-पश्विम-पूरब

तपते ताप सा कहर ,

प्रचंड-उष्ण हवा लहर

गर्म लू सा मंद-मंद पहर ,

रौद्र रूप ऊर्जावान प्रकोप

उड़ती धूल-बंवडर से ,

वन-पहाड़-बगीयां जलें

व्यथित-उदास राहें रुठें

दुपहरी धूप के प्रहार से

दौड़ता जनजीवन ठप

शहर-शहर सड़कें पिघलें

अंग-अंग से बहें पसीना

पग-पग से उठें ज्वार ,

सारे पंछी हुए मूर्छित

सर्वत्र त्राहि-त्राहि पुकारें..

करुणामय श्वासे चलें

मृदु ऋतु के सख्त सन्नाटे से

मुरझाए सृष्टि का यौवन....

देख सिकुड़-सिकुड़ कर ,

जल का बूंद-बूंद मिटें

धरा-व्योम आंसू बहाएं ।

-© शेखर खराड़ी
तिथि- ९/६/२०२२, मई

Hindi Poem by shekhar kharadi Idriya : 111802635
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