हाय ये तन्हाइयाँ...
लगींं जो थीं अपनी सगी।
फिर और कुछ न मांग की
गुजर-बसर इसी में की।।
कहने को ही जमाना है,
बस साथ इक अफसाना है।
नया नहीं था कभी,हां अंदाज नये हैं,
दर्द वही है, मिठास वही है।
लोग नये हैं, अहसास वही है,
ये किस्सा ही, सदियों पुराना है।।
#दर्पणकासच
#दर्द_छलक_जाता_है
#सनातनी_जितेंद्र मन
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Collaborating with YourQuote Didi

Hindi Shayri by सनातनी_जितेंद्र मन : 111801207

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