विषय-खामोशी
दिनांक-23/04/2022
वो आये थे मेरे जीवन में,
जब खामोशी का आलम था।
चुपचाप गुमसुम सी मैं रहती थी, अपने आपसे ही सिर्फ मतलब था।।
नहीं किसी से थी कोई भी शिकायत,
सबकी ही बातें मैं सुन लेती थी।
सबके मन का करते करते ही,
उसी में अपनी खुशी ढूंढ लेती थी।।
सबको अपने-अपने मतलब से ही,
याद मेरी तभी आती थी।
काम हो जाये उनका पूरा तो,
फिर बुराई भी जल्दी दिख जाती थी।।
हमनें भी फिर खामोश रहकर,
सब कुछ सहना सीख लिया था।
नहीं किसी से कुछ भी बोलते ,
मौन रहना फिर सीख लिया था।।
कब तक अपने अंदर की बातों को,
हम तो यूँ ही दबाते रहेंगे।
जब हो जायेगी एकत्र सारी बातें,
बस अंदर ही अंदर हम घुटते रहेंगे।।
इसी घुटन से निकलने के लिए,
कलम को अपनी ताकत बनाया है।
जो भी चलता है मेरे मन में तो,
लिखकर कलम से उसको दर्शाया है।।
इसी लेखनी के चलते ही मैंने,
एक सच्चे ही मित्र को पाया था।
उसकी मीठी-मीठी बातों से तो,
मेरे चेहरे पर हँसी का सैलाब आया था।।
उससे बातें करके मैं तो,
अपने गमों को भूल जाती थी।
कुछ समय उसके संग हंस लेती थी,
और मायूसी पीछे छूट जाती थी।।
पर नियति को ये मंजूर नहीं था,
इस लिए सब कुछ बिखर गया है।
लोगों की गंदी सोच ने तो,
दोनों लोगों को अब दूर किया है।।
वो अपने रास्ते,हम अपने रास्ते,
खामोशी से हम अलग हो गये।
अपनों को खुश रखने के लिए,
उसको अब हम तो भूल ही गये है।।
वही पुरानी जिंदगी में फिर से,
वापस लौटकर हम आ गए है।
खामोश रहना है अब हमको तो,
और लिखकर अपना गुबार निकाल रहे है।।
किरन झा (मिश्री)
ग्वालियर मध्यप्रदेश
-किरन झा मिश्री