My New Poem...!!!
मुश्किल है दौर इतना
और उम्र थक गईं,
अब किससे जाकर पूछें
मंजिल किधर गई,
बेटियाँ बेटियाँ ना रही
इन्सान हैवान-से बन गए..
सिफँ फ़ुल नौँचने से जी
नही भरता ख़ाक बनाके छोड़े..
संस्कृति संस्कार मर्यादा
आज बस ख़्वाब बन गया..
सिक्का चला ना-मर्दों का
ज़ालिम होना गर्व बन गया..
बाजार में हमने पूछा था
कि इंसानियत कहाँ मिलेंगी...??
सबने हंसते हुए कहा कि
जनाब वो तो कब कि मर गईं ...
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-Rooh The Spiritual Power