विषय- अनजान
एक अनजानी सी डगर पर,
और एक अनजान के साथ में।
जोड़ दिया घरवालों ने सम्बन्ध,
और दे दिया हाथ उसके हाथ में।।
नहीं जानते थे एक-दूसरे को,
फिर भी साथ निभाना था।
अनजाने से इस सफर में तो,
दोनों का ही एक हो जाना था।।
अजनबी थे हम दोनों ही,
और एक-दूसरे से अनजान थे।
वो हमारी और हम उनकी,
आदतों से भी नादान थे।।
फिर विवाह जैसे पवित्र बंधन में,
हम दोनों तो बंध गए थे।
वो हमसें और हम उनसे अनजान,
फिर भी दोनों संग हो गए थे।।
जब हो गए साथ में दोनों तो,
जान ही लेंगे एक-दूसरे की बातें।
अनजान शब्द का लेबल हटाके,
साथ बीतेंगी कितनी ही रातें।।
हँसी-खुशी से मिलकर हम दोनों ही,
अपना जीवन यों ही बिताएँगे।
इस अनजान से शुरू हुए रिश्ते को,
अपनेपन से जिंदगीभर निभायेंगे।।
किरन झा (मिश्री)
ग्वालियर मध्यप्रदेश
-किरन झा मिश्री