विषय-यौवन
उसके खिलते यौवन को देखकर,
मन मयूर सा नाच उठा है।
देखकर उसकी मन मोहनी सूरत,
दिल में देखो कैसा बबाल मचा है।।
उसके नयन तीखे कटार से,
दिल पर छुरियां चलाते हैं।
देख ले अगर वो नजरभर के तो,
मन को घायल कर जाते है।।
भौहें उसकी तीर कमान सी,
इशारे करके हमें वो बुलाती है।
पास आ जायें अगर हम तो,
ठेंगा मुझे वो दिखाती हैं।।
लम्बी पतली सी नाक में वो,
वाली पहनकर इतराती है।
वाली पहन अपनी सुंदरता बढ़ाके,
जाने कितनों को वो रिझाती हैं।।
होंठ उसके गुलाबी पंखुड़ी जैसे,
फूलों की तरह ही महकते हैं।
अगर मुस्कुरादे वह धीरे से तो,
कितनों के ही दिल मचलते हैं।।
चेहरा उसका सूर्य के समान ही,
लालिमा को प्रकट करता हैं।
उसकी तेज तपिश से तो,
हर कोई तो उससे डरता है।।
देखकर उसकी कद-काया को,
मन उसका होने को करता है।
पर किसी अंजाने डर से,
कदम पीछे को हटता हैं।।
जो भी देख लें उसके रूप-यौवन को,
बस आँखों में बस जाती हैं।
कब दिखेगी न जाने अब वो,
ये बात दिल में बार-बार आती हैं।।
बहुत हुआ उसके रूप का वर्णन,
सुनकर वो तो इतरायेगी।
अपनी सुंदरता की व्याख्या,
पढ़कर सबको वो सुनायेगी।।
यहीं लगाते है विराम अब हम,
कहीं घमण्ड न उसको हो जाये।
करेंगे थोड़ी बुराई अब हम,
जिससे वो थोड़ी अब चिढ़ जाये।।
किरन झा (मिश्री)
ग्वालियर मध्यप्रदेश
-किरन झा मिश्री