कहते हैं किताबें समाज का आईना होती हैं। हमारे आसपास जो घटित होता है वो कहीं न कहीं हमारी जिन्दगी, हमारी सोच, हमारे आचरण को प्रभावित जरूर करता है। और एक लेखक उसमें अपनी कल्पना और अपने विचार शामिल कर एक कहानी का रूप दे देता है।
Abhilekh Dwivedi की पहली किताब "चार अधूरी बातें" चार लड़कियों की कहानी थी। जैसा कि नाम से विदित है यह कहानी अधूरी थी। इसको पूर्ण किया उनकी अगली किताब "बाकी बातें" ने।
अभी कुछ समय पहले आई है "फरेब का सफर"। इसका सफर भी "बाकी बातें" से शुरू हो गया। जैसा कि अभिलेख ने लिखा ....
"हर फरेब बिना सोचे समझे होता है लेकिन उसके परिणाम बहुत सोचे समझे होते हैं और ज़िन्दगी भर समझने के लिए होते हैं। इंसान फरेब भले कितनी बेशर्मी से करे, लेकिन उसे उसकी रूह से बगावत की खुशबू आती रहती है। उसे पता होता है कि वह भटका तो है पर अभी लौटना नहीं चाहता।"
#फरेब_का_सफर बड़े शहरों में अपने सपनों की उड़ान भरती हुए युवा पीढ़ी की कहानी है। लेकिन इन सपनों के पीछे भागते भागते वो अपनी निजी ज़िन्दगी को इतना उलझा लेते हैं कि न तो कैरियर पर ध्यान दे पाते हैं न ही अपनी लाईफ पर। लिव इन रिलेशनशिप, डेटिंग एप्प और non commitment आचरण की वजह से वो किसी और कै हाथों की कठपुतली बन कर रह जाते हैं। पैसों की खातिर कोई इंसान इतना गिर जाता है कि उसके लिए प्यार दोस्ती रिश्ते ethics कोई मायने नहीं रखते और कितने ही लोगों की जिन्दगी बर्बाद कर देता है जिसका उसे रत्ती भर भी अफसोस नहीं।
हर रात की सुबह होती है लेकिन सुबह अपने साथ क्या नया लाएगी वो पता नहीं होता।
"लेकिन हर सुबह अपना नया चैप्टर शुरू करती है जैसे उसने पहले कहीं कुछ छोड़ा था तो इसी रात के लिए छोड़ा था। ये सुबह की ऐसी जालसाजी है जिसके लिए कोई मोटीवेशनल स्पीकर कुछ नहीं कहता।"
अभिलेख की किताबें हर बार कुछ नया लेकर आती हैं। उनकी किताबें लीक से हटकर हैं और बहुत बोल्डनेस लिए हुए हैं। लेकिन साथ ही सामाजिक तानो-बानो में उलझी ज़िन्दगी से रूबरू करवाती हैं।
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उपरोक्त समीक्षा अलका सेतिया जी ने आज शेयर किया है। ये उपन्यास पेपरबैक और किंडल एडीशन में भी उपलब्ध है।