सबकुछ वैसा ही है
फिर भी कुछ खोया - खोया सा कुछ क्यो है।
चाँद है आसमाँ फिर भी मेरा जहां सोया - सोया क्यो है।।
तू दूर ही सही मुझसे
फिर भी मेरा मन डूबा - डूबा क्यो है।
तेरे होठो की लरजीस मे दबी है कुछ बाते फिर भी
उन्हे सुने बिना भी ये दिल गीला- गीला सा क्यो है।।
मीरा सिंह
-Meera Singh