हां,कवि हूं
क्षण-क्षण में
तलाशता हूं, कविता
टेढ़े-मेढ़े शब्द टटोलकर ,
छैनी, हथोड़ी से
ठिठ पाषाण शब्द तोड़कर ,
जीर्णोद्धार करता हूं
मन-मस्तिष्क की गहराई से
शब्द-शब्द गढ़ता हूं
प्रत्येक्ष-परोक्ष रूप से
सत्य-असत्य देखता हूं
भावनाओं का रस पीकर ,
कल्पनाओं के शहर दौड़ता हूं
लय, गति, अवधि में चलता हूं
ठाट-बाट से शृंगार पहनाकर ,
पाठकों के समक्ष दर्शाता हूं
अद्भुत, अप्रतिम काव्य रचना ।
-© शेखर खराड़ी
तिथि-२८/३/२०२२, मार्च