मैं और मेरे अह्सास
ये जिंदगी रवायत हो गईं l
जबसे तेरी आदत हो गई ll
तुझ से इश्क़ क्या हुआ l
मुहब्बत इबादत हो गई ll
बेपर्दा जब से हुस्न हुआ l
आशिकी इनायत हो गई ll
दो पल की जुदाई हुईं तो l
खुदा से शिकायत हो गई ll
उनसे आँखें चार न की l
नज़र से शराफत हो गई ll
२७ -३-२०२२
सखी दर्शिता बाबूभाई शाह