नयन अश्रु का ना कोई ठिकाना ?
दर्दो का सिलसिला और आँखों का सूखापन कहाँ ?
हर कदम जीवन के कांटों से भरे,
अगर बीच में ठहरू तो दर्द बढ़ता सिर्फ, घटता कहा ?
हरिफाई और वादविवाद का ज्यादा समय नहीं है,
पानी में ढूंढते कीटाणु इतनी फुरसत कहाँ ?
हार कर थक कर मैंने फिर सिर पर हाथ रखा और साँस ली,
वितम्बना के जाप जपु उतना समय कहाँ ?
मैं निराशा को हर वक्त गले लगाऊं ,
लेकिन ईश्वर! आप मुझे निराश होने देते ही हो कहा ??!!
उर्मि