मैं और मेरे अह्सास
में प्रीत के रंग मे रंगने लगी l
चुनरिया मे रंग भरने लगी ll
जन्मो जन्म साथ रहने के लिए l
पिया के ढांचे में ढ़लने लगी ll
मिलन की घड़ीया नजदीक हैं l
सजना के लिए सजने लगी ll
जैसे पंख मिल गये हों आज l
खुशी के ख्वाबों में उड़ने लगी ll
मदहोशी के आलम में सखी l
आंखे सुबह शाम जगने लगी ll १५-३-२०२२
सखी दर्शिता बाबूभाई शाह