इक दर्द लिए मन में, चल पड़ा सघन वन में।
मुसाफिर ढूंढ रहा तन में, इस संसार छगन हन में।।
-इक.....

अभिलाषाओं ने पसारा, रचा षड्यंत्र ये सारा है।
ना मिला पृथक कुछ आज तलक,उच्छिष्ट किनारा है।।
-इक.....

मैं भटका अंदर-भीतर में, थक-हारा किया प्रयास अथक।
ना पाया छोर की पोर कभी, अविच्छिन्न जगन खन है।।
-इक.....
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Hindi Poem by सनातनी_जितेंद्र मन : 111792156

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