टूटते है बादल बिजलिया चीखतीं है ,
सब सुनते है !
हृदय का टूटना ,
अन्तस की चीख भी भला
कोई सुनता है क्या ?
बरसता है सावन धरती भीगती है ,
संतप्त हृदय से निकली निकलती बरखा
से कोई पसीजता है क्या ?
कारणों मे लिपटी है संवेदनाएँ ,
अकारण हो रही पीड़ा कोई
समझता है क्या ?
-Ruchi Dixit