देह मे देह से पीड़ा के अतिरिक्त
कुछ नही |
तुम अन्तर आभूषण ही सही |
जो मेरे हृदय को विरक्ति की पीड़ा नही देते ,
जिसमे मै ही दिखती जो मुझपर ही शोभा देता है|
आडम्बर नही वहाँ , वहाँ झूठ नही न, नित नये पाखण्ड,
न भय , न स्थूलता , न शिथिलता , न आकृति , न विकृति , केवल एक विश्वास तुम मेरे हो और मै तुम्हारी ,
तुम्हे मुझसे कोई छीन नही सकता , तुम्हे मेरे अतिरिक्त कोई देख नही सकता न स्पर्श कर सकता है , तुम्हारा भेद मै हूँ और तुम मेरे , हम अभेद | बस प्रेम ,प्रेम आकृति और समर्पण |