गिला
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हम गिला कैसे करें ज़माने से
हो रहे सभी तो बेगाने से
उन से जो नज़रें मिल भी जाती हैं
कतराते हैं वोअब नजर मिलाने से
बातों - बातों में जिक्र होता है उनका
लोग कैसे हो रहे हैं अनजाने से
मजबूरियाँ है सभी की यहाँ अब तो
चुपके -चुपके निहारे होकर दीवाने से
आती - जाती है कई आँधियाँ यूँ तो
कुछ भी हासिल न होगा घबराने से
फूल संग काँटे तो रहते ही हैं अक्सर
खुशी मिलेगी दिलों में प्यार महकाने से।
आभा दवे
मुंबई