विषय-कृष्ण,कान्हा
हे गिरधर,गोपाल,मुरारी,
सुन लो इतनी सी विनती हमारी।
मुझे तुम अपनी दासी बनाकर,
कृपा करना सदैव बाँके बिहारी।।
तुम्हारा साथ जो मिले हर जन्म में,
कभी मीरा कभी राधा बन जाऊं।
भाग्य की रेखा अगर प्रबल हुई तो,
रुक्मणी बन मैं विवाह रचाऊँ।।
तुम्हारे सानिध्य को पाने के लिए,
सारे रिश्तों से मैं विमुख हो जाऊं।
ऐसा हाथ तुम थामना कान्हा,
बस तुम्हारी ही हमेशा रट लगाऊं।।
मेरे मन मंदिर में ऐसे बसे हो कान्हा,
किसी और की मैंने नहीं जगह बनाई।
मेरी आँखों में बस तुम्हारी ही छवि है,
किसी और को मैं तो कभी देख न पायी।।
मेरा तुम्हारा सम्बन्ध तो कान्हा,
जन्मोजन्मान्तर तक बना रहे।
मैं ध्याति रहूँ तुम्हें हर जन्म में,
हर जन्म ही सांवरे तुम्हारा साथ मिले।।
किरन झा (मिश्री)
-किरन झा मिश्री