जैसे जैसे वक़्त बढ़ा
वैसे वैसे इंसान बढ़ा ,
सही ग़लत का व्याप्त बढ़ा
ठाट-बाट का पद बढ़ा ,
छल-कपट का नाम बढ़ा
द्वेष-प्रपंच का हाथ बढ़ा ,
दया, स्नेह का स्वार्थ बढ़ा
लालश-लोभ का मन बढ़ा ,
खान-पान का तन बढ़ा
ढोंग-पाखंड का रोग बढ़ा ,
असंख्य झूठ का व्यवहार बढ़ा
परस्पर रिश्तों का व्यापार बढ़ा ,
प्रतिद्वंद्वियों के बीच तिरस्कार बढ़ा
उपलब्धियों के मध्य द्वंद्व बढ़ा ,
राजनैतिक भंवर का खेल बढ़ा
अनैतिक वृत्ति का व्याप्त बढ़ा ,
व्यक्ति का अहंकार बढ़ा
सत्ता का प्रभाव बढ़ा ,
भ्रष्टाचार का खून बढ़ा
क्रूरता का शस्त्र बढ़ा ,
वर्चस्व का प्रहार बढ़ा
विनाश का युद्ध बढ़ा ,
मानवता का नाश बढ़ा
मदद का स्वांग बढ़ा ,
हाहाकार का खौफ़ बढ़ा
विवशता का रौद्र बढ़ा ,
लेखक का आक्रोश बढ़ा
लिखने का आरंभ बढ़ा ,
संघर्ष का अंत बढ़ा ।
©- शेखर खराड़ी
तिथि २/३/२०२२, मार्च