विषय-कन्या भ्रूण हत्या
मैं आपकी बिटिया हूँ बाबा,
जब तुम ये तो जान ही लोगें।
बेटी समझकर बाबा तुम तो,
क्या मुझको भी मार ही दोगे।।
मैं भी तुम्हारा एक अंश हूँ,
जैसे एक बेटा होता है।
मेरे अंदर भी साँसे चलती है,
मेरा दिल भी तो रोता है।।
मैं तो हूँ आपके प्रेम की निशानी,
मुझसे कभी न मुँह मोड़ना।
लड़की समझकर बाबा तुम तो,
मुझे कभी न ऐसे ही छोड़ना।।
एक बच्चे की पीड़ा को तो,
माँ से ज्यादा कौन समझता है।
नों महीने अपनी कोख में रखकर,
उसकी हलचल महसूस करता है।।
मां के लिए बेटा और बेटी तो,
दोनों ही उसका खून है।
बिना भेदभाव के स्नेह वो करती,
ये तो उनके प्रेम का जुनून हैं।।
बेटी होने पर तो परिवार में,
एक मातम सा छा जाता है।
जैसे कोई अभिशाप मिला हो,
सब कुछ जैसे लुट जाता है।।
बेटी को कभी बोझ न समझना,
बेटी तो गृहलक्ष्मी होती है।
जिस घर भी यह जाती है,
विपदाओं से मुक्ति होती है।।
जब बेटियाँ ही नहीं रहेंगी ,
तो भाई को राखी कौन बांधेगा।
अपने बेटे के लिए माँ-बाप तो,
बहू कहाँ से फिर लायेगा।।
एक औरत तो दूसरी औरत की,
पता नहीं क्यों दुश्मन बनती है।
एक स्त्री ही तो एक कन्या को,
माँ बनकर ही जन्म करती है।।
बेटी को कभी कमजोर न समझना,
वह भी माता पिता का नाम रोशन करती है।
मिल जाये अगर उसको मौका तो,
दुश्मनों के दांत भी खट्टे करती है।।
माता पिता के जीवन का उद्धार भी,
कन्यादान करने से ही होता है।
इस दान को करने पर ही,
जीवन तो उनका सफल होता है।।
नहीं करना अब कन्या भ्रूण हत्या,
ये सब लोग तो ठान ही लो।
नयी सोच के साथ अब तो,
नये फैसले का आगाज करो।।
छोड़ो समाज की अब ये कुरीति,
आओ मिलकर संकल्प करें हम।
बेटा हो या बेटी पैदा हो,
भेदभाव का अब अंत करें हम।।
किरन झा (मिश्री)
ग्वालियर मध्यप्रदेश
-किरन झा मिश्री