आखरी मुस्कान
कनित सुशोभित मन , कुमकुम भर पेड़ों पे चले निश्छल
ना तेवर! ना वैभव पसंद
रमणीक हृदय लिए ,जन में लगे , तारा मनपसंद ।
न खंडित करें किसी का मन
एक मीठी सी आभा लिए , गुलकंद ले स्वयं की वाक में
मिठास घोले औरों के तन मन ।
कया ! खो गया है उसकी छवि में मेरा चंद्रमण
टूटे हुए पथिक को,
उसने गोचर कराया ,जीवन के नवीन रंग !
ज्योर्तिमय कर गई उसकी आखरी मुस्कान
मेरे तमस जीवन में दे उजली किरण ।
अब अधीर हो गया है , तन मन
क्या कभी दृष्टिगोचर होंगे ,वह पुलकित मुस्कुराते नयन ।
हटी भाव का था ना मै कभी ,
परंतु ! वह गुलकंद सी मुस्कान ने
ले लिया है मेरा मन ।
Deepti