कुण्डलिया छंद विधा काव्य
विषय- करुणामय
शुद्ध हृदय बने करुणामय, स्नेह-सत्य-अहिंसा ।
जन-जन मानव बनें, पुष्प सुंदर खिल जाएं ।
पुष्प सुंदर खिल जाएं, निस्वार्थ भाव मिल जाएं ।
बुद्ध पद्म खिल जाएं, उत्कृष्ट संघर्ष दिखाएं ।
रहे निर्भीक निष्पक्ष, प्रगति पथ पर ।
मिले भिक्षु तुझे यही, शुद्ध हृदय बने करुणामय ।
लिप्सा-धृणा-तृष्णा मिटा, स्वीकार नैसर्गिक पाठ ।
छोड़ गहन सुख संपदा, हर्षित शांति मिलेगी ।
हर्षित शांति मिलेगी, वन-खेत-नदी भ्रमण ।
स्वच्छ ज्ञान मिल जाएं, विस्तृत मर्म समझ ।
रहे अद्भुत वैराग्य, सदैव तन-मन पढ़ ।
मिले पुर्ण रूप यहां, लिप्सा-धृणा-तृष्णा मिटा ।
स्वार्थ व्यवहार अपनाकर, निष्ठुर मानुष मत बन ।
रख शुद्ध मन मंदिर, निर्विकार ऊर्जा मिलेगी ।
निर्विकार ऊर्जा मिलेगी, क्षण-क्षण व्याप्त रहेगी ।
सरल-सहज दिखेंगी, मृदुल स्नेह सुगंध ।
बहे रक्त-मज्जा-अस्थि, सृदृढ़ बल प्रति क्षण ।
दिखे सृष्टि पर कष्ट, स्वार्थ व्यवहार अपनाकर ।
-© शेखर खराड़ी इड़रिया
तिथि-२५/२/२०२२, फ़रवरी