मानवेश्वर :- मृत्यु शैय्या पर
(1)
कौन है मानवेश्वर?
क्या है उसका नाम?
जानते है सभी उसे,
वो वृंदावन का लाल,
श्याम द्वारकाधीश मनोहर,
कृष्ण, राधा के नाथ,,
पहुंचे मृत्यु शैय्या पर कब,
जग को करके अनाथ।।
सबने सोचा रखा था ये कि,
उनका नहीं कोई काल,
ओजस्वी प्रतिभा से निखरा,
अदभुत रूप विकराल,,।
एक बार नारद ने प्रभु से,
पूछा मृत्यु का कारण,
प्रभु मुस्काते बोल उठे कि,
नश्वरता रहती हैं कण- कण,
जहां जहां यह रहती है,
वहाँ अंत तो आना हैं,
कई जन्म लेकर भी मुझको,
मृत्यु को तो पाना हैं।।
प्रश्न:- श्री कृष्ण जी की मृत्यु के कारण क्या थे??
(2)
हुए नारद गंभीर,
कहा ये बात असंभव लगती है,
निमित आपका बने कोई ये,
अनहोनी नहीं होनी है,
मृत्यु होने की शंका से नाथ आपने घेरा है,
कारण तो मुझको बतला दो मन मेरा अब ठहरा है!
प्रभु ने कहा ठीक है नारद,
रहस्य तुम्हे बताता हूँ,
गूढ़ रूप में छिपा मृत्यु का,
भेस तुम्हे दिखलाता हूँ,
दिव्य रूप में जन्मूँगा मैं,
वासुदेव की देहरी पर,
चरण कमल ही होंगे मेरी,
मृत्यु के आधार प्रबल।
चरणों से मृत्यु कैसे हो,
बात अटपटी लगती है,
प्रभु की मृत्यु की सुनकर,
ये कनपटी अब जलती हैं।।।
(3)
मुस्काते प्रभु ने बोला तुम धैर्य रखो कुछ सब्र करो,
कोमल कमल होता है वैसी कोमलता को मन में धरो,
नारद ने तब प्रश्न किया क्या कोमलता कमजोरी है,
आत्मसात जो हुए मुझे क्या वहीं सत्य अनहोनी है?
प्रभु ने कहा नहीं वत्स! मृत्यु के और भी सारे कारण है,
सुनो उन्हें फिर जानो मृत्यु का मेरी क्या कारण है,
बाल्यकाल में ऋषि दुर्वासा ने माखन मटकी दी थी,
कहा था लगा लो शरीर पर जो मैंने मल ही ली थी,
पर चरणों पर लगाना मुझको ऋषि अपमान लगता था,
पक गया मेरा ये शरीर पर चरण भाग ही कच्चा था,
नारद ने फिर पूछा प्रभु से क्या ये था मृत्यु कारण,
तब प्रभु फिर मुस्काते बोले- नहीं - नहीं नारद रखो सब्र,
सुन लोगे तो जान पाओगे मृत्यु के रहस्य सहस्र।।
(4- अंतिम भाग)
बर्बरीक के माया अस्त्र से बचा सकू संसार को,
चरणों पर ले लिया घात वो जिससे सर्व कल्याण हो,
नारद तब बोले क्या किया प्रभु,
तब प्रभु मुस्काते बोले जो मानव के हित में हो।
तत्पश्चात सुनो नारद अब मृत्यु का स्वर्णिम कारण,.....
कुलहीन हुआ मैं पुत्रहीन,
मै वंशहीन मै सबसे दीन,
जब अंत द्वारका का आया,
तो मृत्यु का साया छाया,
ये खेल बना नियति का था,
जो मुझको लेने ही आया,.....
तब नारद ने करुणा से पूछा प्रभु!
क्या अभी भी है कुछ शेष,
प्रभु फिर मुस्काते बोले हाँ बचे है कुछ अवशेष,
मेरी मृत्यु के कितने कारण पर अंतिम तुम्हे सुनाता हूं,
मेरे चरण बसे राधा हिय में ये बात तुम्हे बताता हूं,
मृत्यु उसकी जब अाई थी तो अंत शुरू मेरा ही था,
अब क्या जानना चाहोगे की मानवेश्वर
क्यों मृत्यु शैया पर था!.......
हाँ, समझ गया प्रभु मै नारद,
ये भाग्य नियति का खेल था,
आत्मा का फिर परमात्मा बनने,
की नियति का मेल था।।.......