दिल थाम के बैठिए जनाब
अरे ! जान लेने को क्यों है इतने बेताब ?
गौर फरमाइए , ना ये सावन की घटा है
ना बिजली की बौछार
जरा सोचिए तो यूं मुफ्त में मिलती तो
कैसे करते लेने से इंकार !
उसने दी भी तो गलती से सही
हमें ना आई रास मगर !
जब देखो तब कहते रहते
अरे ये दुःख काहे खतम नही होता बे
अभी मिली है तो सुख दुःख साथ मिलेगा,
आजकल के प्यार की तरह
अंतिम तारीख निश्चित कर नही आता
अगर उसे झेलोगे ही तो बस बेबस रह जाओगे
जिंदगी मिली है साहब
कोई किराए की साइकल थोड़ी
जो पंक्चर कर वापिस कर दोगे ?
इसका तो हिसाब पक्का लगेगा
समझ लो , जीना है तो जियो....नही जीना तो फिर भी जियो ;)
- उर्मि