शीर्षक: दूर न जाना
दूर न जाना नजदीक से लौट आना
मनवा चँचल हो कहीं भटक न जाना
राहें तेरी अब जवाँ नहीं रही सोचना
अनाड़ी बन कहीं आगे न बढ़ जाना
दूर न.....
क्या पाया जो सँसार से मोह लगाया
कौन था तेरा अपना ? कौन है पराया
बंधन में बंध सदा तूँ अंदर में ही रोया
बाहर से तो तुझे कोई नहीं समझ पाया
दूर न...
न जाना फिर भी मन तूँ सदा भरमाया
इंसानी चोले के अंदर सदा कसमसाया
पीया ज्ञान पर छानकर कभी न पीया
अपनी ही बुद्धि पर क्यों इतना इतराया ?
दूर न...
दूर गया जो भी आज तक न लौट पाया
रैना बीते, साँझ ढ़ले, इँतजार ने रुलाया
जो चला गया उसे जग ने भी है भुलाया
मनवाँ मेरे, संयम में ही सारा सुख समाया
दूर न....
✍️ कमल भंसाली