आज तो मन में रह-रहकर,
बस यही सवाल उठता है।
कोई तो मेरा भी हमदर्द होता,
दिल तो यही कहता है।।
मेरे मायूस चेहरे को वो तो,
एक पल में ही जान लेता।
मेरे अंदर क्या चल रहा है,
ये तो एक पल में ही भांप लेता।।
मुझे अपनी बाँहो में भरकर,
गले वो मुझे लगा लेता।
मेरे माथे पर चुम्बन लेकर,
अपनी मोहर वो लगा ही देता।।
उसके सीने पर सिर रखकर,
उसमें हम तो खो ही जाते।
दिल से दिल की बातें कर,
घण्टों उनसे तो बतियातें।।
पर मेरी किस्मत में शायद,
किसी का प्रेम नहीं लिखा है।
अकेले ही रहना है मुझको,
मेरा दिल बस यही कहता है।।
जाने-अंजाने में मैंने तो,
कितनों का ही दिल दुखाया है।
नहीं किसी के प्रेम को समझा,
इस लिये अकेलापन ही पाया है।।
आज इस अकेलेपन को तो,
कोई तो अपनेपन से बांट लेना।
मुझे प्रेम से अपने गले लगाकर,
मेरे दुख-दर्द को बांट ही लेना।।
किरन झा (मिश्री)
-किरन झा मिश्री