जो उसे देख ना पाए,
वो आंखे किस काम की ?
जो मेरा प्यार ना बया कर पाए,
वह होंठ किस काम के ?
जो उसकी आवाज के लिए तरसे,
उन कानों को क्या समझाऊं ?
जो उसकी खुशबू ढूंढे,
उस नाक को कैसे लूभाऊ ?
अकेले में शर्ट के दो बटन खुले देख, जो शर्मा कर मुंह फेर लेती थी।
अब वह अदा कहां से लाऊं ?
जिस पर तेरी नजर ना पड़े,
उस शरीर का बोझ कैसे उठाऊ ?
अब तो यही दरखास्त हर मंदिर, दरगाह, गुरुद्वारे में लगाता हूं।
जितने दिन की जिंदगी बची है। उसके साथ गुजारू, कह माथा टेक आता हूं।
किस्मत ने भी अपना खेल क्या खूब रचाया है।
मेरी जिंदगी के गुरुर को, अपनी उंगलियों पर नचाया है।
अभी तो यह शुरुआत है, सफर काफी पथरीला है।
अब बचीं है कुछ लम्हों की जिंदगी, यही उसका खेला है।