गेंहू के कल्ले पर गिरी
ओश बिंदु सी तुम..
मेरे सहज स्पर्श से
ओझल हो जाती ।
क्षणभर नैनों से दूर
सत्य प्रतीत होती ,
पास पहुंचने से पहले
अदृश्य मिलती ।
स्वप्निल पथ पर
धुमिल दिखती ,
व्यर्थ अधाग प्रयत्न
हुए मिथ्या साबित ।
ठोस प्रेम से तुम्हें..
हृदय में कैसे ढूंढें ,
तुम बहता पानी
कैसे तुम्हें पा लूं ।
-© शेखर खराड़ी
तिथि- १/१/२०२२, फेब्रुअरी