छुप-छुपकर देखा करते है,
हम तो एक तस्वीर तुम्हारी।
कब नजरों के जरिये दिल में,
उतर गई सूरत ये तुम्हारी।।
कुछ भी अब समझ नहीं आ रहा,
ये मुझको क्या हो गया है।
लगता है शायद मुझको तो,
किसी से प्यार हो गया है।।
जब से मिले है वो हमसें तो,
दिल उनकी ओर खिंच रहा है।
बातों के जादू से मुझको तो,
नशा प्रेम का यों चढ़ रहा है।।
अब तो एक पल भी उनके बिन,
रहना शायद मुमकिन नहीं है।
हर पल वो ही नजर आती है,
बिना देखे रहना नामुमकिन नहीं है।।
पता है वो कभी मिल नहीं सकती,
उसकी भी कुछ मजबूरी है।
इसी लिए तो हम दोनों में,
आज भी इतनी दूरी है।।
किरन झा (मिश्री)
-किरन झा मिश्री