मुझको तो हिंदी साहित्य का,
ज्यादा कुछ मालूम नहीं है।
क्योकि लेखन कार्य में मैं तो,
कुछ ज्यादा अभ्यस्त नहीं हूँ।।
मैं तो लेखन की दुनियाँ में,
कुछ समय पहले ही आयीं हूँ।
कुछ लोगों के लिए मैं अज्ञानी हूँ,
पर कुछ लोगों के दिल पर छायी हूँ।।
माना ज्ञान का भंडार नहीं है,
फिर भी मैं अज्ञानी नहीं हूँ।
मेरे अंदर भी कोमल ह्रदय है,
इस लिये मैं अभिमानी नहीं हूँ।।
जो भी आता मन में मेरे तो,
वही कागज पर उतार देती हूँ।
अपने मन की भावनाओं को,
शब्दों में ही तो उकेर देती हूँ।।
हिंदी साहित्य की क्या-क्या विधाएँ है,
ये ज्यादा मुझको मालूम नहीं है।
पढ़ती हूँ जब दूसरों के शब्दों को,
दिल उस शैली से अनभिज्ञ नहीं है।।
Kiranjha4362
-किरन झा मिश्री