पढ़ने चली थी खोली जो किताब ने , तो समझाया , क्या करेगी पढ़कर तेरा वक्त कहाँ तेरा , तेरा तो ! वक्त आया | तू अनपढ़ ही सही जा ! ! घर जा ! नासमझ , बेहतरी तेरी नासमझी मे है , समझ ने ही सबको गिराया | तू तो पहले से गिरी है फर्क समझ ने नही समय ने तुझे समझाया |
-Ruchi Dixit