लोचन-कमल दुख-मोचन तिलक भाल,
स्रवननि कुंडल मुकुट धरे माथ है।
ओढ़ पीत-बसन गरे मैं वैजयंती-माल,
संख चक्र गदा और पद्म लिए हाथ हैं॥
कहत नरोत्तम संदीपनि गुरू के पास,
तुम ही कहत हम पढ़े एक साथ हैं।
द्वारिका कै गए हरि दारिद हरैंगे पिय,
द्वारिका के नाथ वै अनाथन के नाथ हैं॥
सुदामा की पत्नी अपने पति से श्रीकृष्ण के पास जाने का आग्रह करती हुई कहती है कि कमल के समान नेत्र वाले, दुखों को दूर करने वाले, माथे पर तिलक धारण करने वाले, कानों में कुंडल धारण करने वाले, मस्तक पर मुकुट पहने, पीले वस्त्रों को ओढ़े, गले में वैजयंती माला पहने, हाथ में शंख, चक्र, गदा तथा कमल को लिए जिस चतुर्भुज मूर्ति का सबने परमात्मा के रूप में उल्लेख किया है, श्रीकृष्ण वास्तव में उन्हीं के अवतार हैं। संदीपन गुरु के आश्रम में जो कृष्ण आपके साथ पढ़े हैं और जिन्हें आप अपना बाल-सखा मानते हैं, वे सांसारिक व्यक्ति नहीं हैं। वे आज द्वारिका के स्वामी हैं। वे अनाथों के नाथ हैं, अतः यदि आप द्वारिका जाएँगे तो वे अवश्य ही हमारी निर्धनता दूर करेंगे।