अपनी असमर्थता का बखान किया था खूब मैने भी, कैद थी पिंजरे जंजीर भी अपनी थी, मगर था प्रेम मुझे हिम्मत, हौसले से ही चाहकर हाथ जिसका मै समय पर न थाम सकी , मगर फिर भी , बुलाता रहा निरन्तर बाँहे फैलाये मुझे जीत गया आखिर , आज है साथ मेरे बेशक युवा नही प्रौढ़ सही | मगर है फिर, भी बड़ा ही आत्मसम्मानी , बना है प्रेरणा जो मेरे जीवन की ||
-Ruchi Dixit