तिरी महकती वादियों के संग ये अंखियां लड़ी है ।
तिरी गुजरती धूप के पास ये नज़र धुंधली पड़ी है ।।
तिरी बढ़ती बातें के संग ये असर कच्ची मिली है ।
तिरी ढ़लती यादों के पास ये उम्मीदें पक्की घुली है ।।
तिरी ठहरती रवा के संग ये बरकत सच्ची गढ़ी है ।
तिरी उमड़ती अदा के पास ये हसरत अभी अड़ी है ।।
तिरी टहलती वफ़ा के संग ये पाक दुआ कभी पढ़ीं है ।
तिरी उड़ती नज़रों के पास ये दिल-ए-ख़ाक जली है ।।
तिरी उतरती खफ़ा के संग ये नूर-ए-ज़मीर मिटी है ।
तिरी भागती उल्फत के पास ये दर्द-ए-इश्क़ जगी है ।।
- © शेखर खराड़ी
तिथि- २८/१२/२०२१