My Evaluation Poem...!!!
यारो खाने में नमक स्वादनुसार
और जीवन में अकड़ औकात
अनुसार हो तब ही ठीक लगता हैं..
वैसे ही आपकी बातो में झूठ
और व्यवहार में प्यार भी गर
हैसियत अनुसार हो तब ही ...!!
हाॅ मगर समझ के दायरे जितने
बुलंद होगें उतना ही अल्फ़ाज़ो
का इस्तेमाल निम्नस्तर होगा तब ही...
एसे ही सन्त पीर फकीर की बातो
में असर पैदा नही हो जाता उनकी
तपश्चर्या अनुसार लफ्ज़ भी गुलाम हो जाते है
😈😜🤟
-Rooh The Spiritual Power