1 पवन
पवन लटों से खेलता, उलझाता हर बार।
परेशान लट कह उठी, मानी हमने हार।।
2 सिहरन
पावस की बूँदें गिरीं, गोरी के जब गाल।
सिहरन तन-मन में हुई, जैसे मली गुलाल।।
3 उपहार
गालों पर धर-अधर ने, दिया प्रेम उपहार।
सजनी का साजन चतुर, मिला उसे है प्यार ।।
4 प्रेम
प्रेम बड़ा अनमोल है, भूला नहीं गरीब।
जीवन जीने की कला, दिल के बड़े करीब।।
5 प्रतीक
अधरों ने छेड़ी गजल, दिल में प्रेम प्रतीक।
नयन शरम से झुक गए, मुख दमके रमणीक ।।
6 प्रतिबिंब
दर्पण में प्रतिबिंब को, हुआ देख हैरान।
सज्जनता का रूप धर, हँसता है शैतान।।
7 प्रतीति
सुख-प्रतीति में जी रहे, नेताओं के संग।
उनकी ही हर बात पर, हमपर चढ़ता रंग।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "