न जान पाई न पहचान पाई मुझे, जिन्दगी ये किसकी कमी है ? होने को रूखसत़ बढे जा रहे है हम अपने कदमो से लड़े जा रहे है | दिया तूने मौका बहुत मैने माना मगर मेरा अन्तर नही तूने जाना ,
चल पड़ूँ हर तरफ कदम वो नही है , ठहरी भी खुद मे नही ठौर देखी , मगर हाथ पकड़ा न तूने कभी भी करती थी ,करती रही अनदेखी |
-Ruchi Dixit