झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई प्रथम वीरांगना थीं जिन्होंने अंग्रेज़ों के विरुद्ध सन् 1857 में युद्ध का बिगुल फूँका था 🎷🎷 और वीरगति को प्राप्त हो गई थीं। देश उनके बलिदान को कभी नहीं भूल सकता। उन्हें हार्दिक नमन 🙏🌺🌺🌺🌺🙏
हाथ कंगन को आरसी क्या ?
पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या ?
इसलिए आप ख़ुद ही समझ जाएँगे कि ये पँक्तियाँ किसके लिए और क्यों लिखी गई होंगी ?
तो पढ़िए और समझ लीजिए।
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मिली आज़ादी! अब ???
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फ़िल्मी नायिका का नाम
मंच पर पुकारा जाता है।
पुरस्कार से सम्मानित यूँ
जब उन्हें किया जाता है।
कुछ समय बाद अचानक
वक्तव्य उनका यूँ आता है।
सन् 1947 में जो मिली थी
वह आज़ादी नहीं, भीख थी।
असली आज़ादी तो वह है
जो सन् 2014 में मिली है।
पाकर राष्ट्रपति पुरस्कार
इतना हो गया अहंकार ?
चाटुकारिता की हद को
कर दिया कुछ ऐसे पार ?
शहीदों के बलिदान से
मिली जो हमें आज़ादी थी।
पल में भूल गई वह नारी
इतिहास की जो त्रासदी थी।
रानी लक्ष्मी बाई चरित्र को
उसने, पर्दे पर कभी उतारा था।
पर उनकी पावन आत्मा को
जैसे कत्ल आज कर डाला था।
कभी न सोचा था हमने कि
वो सब बलिदान भुला देगी।
लक्ष्मी बाई का अभिनय करते
वह दरबारी राग अलापेगी।
धिक्कार है ऐसी नारी को
जो शहीदों का अपमान करे।
चाटुकार बन एक ही दल का
स्वार्थवश जो सम्मान करे।
हाँ! सही कहा है उसने भी यह
असली आज़ादी है मिली अभी ।
"बस एक ही दल को" जो करता
मनमानी - कहीं भी और कभी भी।
पूरे देश पे हुई सत्ता हावी जब
एक दल को मिली आज़ादी तब।
सत्ता हावी करके ही तो
इस दल को मिली आज़ादी अब।
अपनाए साम दाम दंड भेद सब
ऐसे मिली उन्हें आज़ादी अब ???
क्या मिली उन्हें आज़ादी अब ???
आह! कैसी मिली आज़ादी अब ???
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अभिव्यक्ति - प्रमिला कौशिक
11 नवम्बर 2021
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