# हिंदी कविता
तुम बिन कुछ नहीं
सूखा सा है जीवन का पत्ता, हर मौसम लगे पतझड़ की सत्ता
बदली छाई है हर जगह ,सुख की साँसों में भी बरसे
आँखों से आँसुओं की घटा ...
गूँजती है कानों में , जानी सी एक आवाज
वक्त रहते वो दिख जाए! लेकिन रहता है वो अज्ञातवास
वस्त्र,आभूषण कुछ ना भाये , खट्टा सा लगे मीठे जीवन का स्वाद...
कशमकश में रहता है आँखों का दर्पण
परस्पर ढूँढता रहता है ,वो एक चेहरे को हर पल
पागल बनाया है जिस बंधन ने ऐसा हर चेहरे को देख कहे
"उस जैसा कोई नहीं है दूसरा "....
जीवन का हर स्वर लगे अधूरा ,
कसूर है किसका "कि वो नहीं है पूरा"
अधूरा सा प्रतीत होये जीवन का संपूर्ण समागम
"तुम बिन कुछ नहीं" कहे मुस्कुराते हुए जलती रहे अग्नि में वो हर पल....
Deepti