My Spiritual Poem...!!!
यारो अपने ही *"उसूल"* कुछ
इस तरह *"तोड़-मरोड़े'* हमने
जहा *"गलती"* हमारी नहीं थी
वहाॅ पर भी *"हाथ"* जोड़े हमने
*'अना'*की *आन-औ-शान*
से भी सभी नाते तक तोड़े हमने
आसान तो *हरगिज* नही था
*बेकसूर* हो के भी *कसूरवार* मानना
*नजर-अँदाज* अपनी *नजर* कर
उनकी *नज़र* को सही माना हमने
ज़वा-मर्दी-औ-हिम्मतका काम है
*बेगुनाह*हो के भी *गुनाह* मानना
*लकीर* दिल पर जख्म तो दे गई
*लकीर* चेहरे की जाहिर न की हमने
*प्रभु-नजरिए* से मासूम थे हम
पर *नजरिए* को नजर-अँदाज किए
न थी *हकीकत हक़* की कबूल
उन्हे *आन* की *शान* कुर्बान कि हमने
💔🖤
-Rooh The Spiritual Power