राग रामकली
हौं इक नई बात सुनि आई ।
महरि जसौदा ढौटा जायौ, घर घर होति बधाई ॥
द्वारैं भीर गोप-गोपिनि की, महिमा बरनि न जाई ।
अति आनन्द होत गोकुल मैं, रतन भूमि सब छाई ॥
नाचत बृद्ध, तरुन अरु बालक, गोरस-कीच मचाई ।
सूरदास स्वामी सुख-सागर, सुंदर स्याम कन्हाई ॥
भावार्थ :-- (कोई गोपिका कहती है-) मैं एक नवीन समाचार सुन आयी हूँ--`व्रजरानी श्रीयशोदा जी के पुत्र उत्पन्न हुआ है, घर-घर में बधाई (मंगलगान) हो रही है । (व्रजराज के) द्वार पर गोप-गोपियों की भीड़ लगी है । आज के उनके महत्त्व का वर्णन नहीं हो सकता । गोकुल में अत्यन्त आनंद मनाया जा रहा है (वहाँ की ) सारी पृथ्वी रत्नों से ढक गयी है । सभी वृद्ध, तरुण और बालक नाच रहे हैं । (उन्होंने) गोरस (दूध, दही, माखन) का कीचड़ मचा रखा है ।'सूरदास जी कहते हैं कि मेरे स्वामी श्यामसुन्दर कन्हाई सुख के समुद्र हैं । (इनके गोकुल आने से वहाँ आनन्द-महोत्सव तो होगा ही ।)