नाखुश क्यों है वो खैरियत पे हमारी?
मजा लूट रहें थे जो कैफ़ियत पे हमारी;
उन्हें यकीन नहीं है मुहब्बत पे हमारी;
मगर बेवफाई नहीं है नियत में हमारी;
जिक्र हैं जिनका हमारे शेरों - गझल में,
क्या दिल धड़कता है शेरीयत पे हमारी?
कि थी कभी बे-इंतिहा मुहब्बत जिससे,
अब शक करते हैं वो शख्सियत पे हमारी;
इतनी भी बेरुखी क्यों है उन्हें हमसे खुदा?
कि राह मोड़ लेते हैं वो हिदायत पे हमारी;
यहां खुद मुहाजिर हैं इस जहां में दोस्तों,
और हमें तोलते हैं वो हैसियत पे हमारी?
घाव जो लगे थे अब मजा देने लगे हैं हमें,
खुदा भी खुद हेरान है इनायत पे हमारी;
आयेगा वक्त मेरा फिर से जरूर एक दिन,
यकीन हैं हमें अभी भी किस्मत पे हमारी;
जिते हैं आज भी शान से "व्योम" माफिक,
मत बहाना एक भी आंसू मैयत पे हमारी;
...© विनोद.मो.सोलंकी "व्योम"
GETCO (GEB)