Hindi Quote in Poem by Sudhir Srivastava

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श्राद्ध दिवस
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आइए! फिर इस बार भी
श्राद्ध दिवस की दिखावटी ही सही
औपचारिकता निभाते हैं,
सामाजिक प्राणी होने का
कर्तव्य निभाते हैं।
जीते जी जिन पूर्वजों को
कभी सम्मान तक नहीं दिया
बेटा, नाती, पोता होने का
आभास तक महसूस न किया,
अपने पद प्रतिष्ठा
और सम्मान की खातिर,
बिना माँ बाप के
खुद के अनाथ होन का
प्रचार तक कर दिया।
जिनकी मौत पर मैं नहीं रोया
उनकी लाश तक को
अपने कँधों पर नहीं ढोया,
क्रिया कर्म को भी ढकोसला और
फिजूलखर्ची के सिवा
कुछ भी नहीं समझा।
पर आज जाने क्यों मन बड़ा उदास है,
एक अजीब सी बेचैनी है
जैसे पुरखों की आत्मा धिक्कार रही है,
लगता है श्राद्ध का भोजन माँग रही है।
आखिर श्राद्ध का भोज मैं
किस किस को और क्यों कराऊँ?
जब औपचारिकता ही निभानी है
तो भूखे असहायों को खिलाऊँ
मेरे मन का बोझ कम हो या न हो
कम से कम किसी को एक वक्त ही सही
भरपेट भोजन करा
उन्हें तृप्त तो कर पाऊँ,
शायद पुरखों की आत्मा को
थोड़ा सूकुन दे पाऊँ।
इससे बेहतर कुछ और नहीं लगता
मेरे कर्मों को जो भी हिसाब होगा
मुझको जरा भी मलाल न होगा
पर मेरे विचार से श्राद्ध करने के लिए
इससे बेहतर और कुछ नहीं होगा।
पुरखों की आत्मा की शान्ति और
तृप्तता के लिए किसी भूखे की
भूख मिटाने से और बेहतर
कोई श्राद्ध दिवस नहीं होगा।
👉 सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
©मौलिक, स्वरचित

Hindi Poem by Sudhir Srivastava : 111752398
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