Hindi Quote in Story by Abhilekh Dwivedi

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ये शायद किसी ने देखा नहीं था लेकिन वहीं झाड़ियों में जयराम और चौधरी थे जो इन सब बातों पर गौर कर रहे थे। सबको जाते देख कर वो भी निकल लिए।
"कुछ पता किया तुम लोगों ने?" इंस्पेक्टर ने कॉन्स्टेबल्स से पूछा।
"सर, वो परधान के परिवार का पगला तो सही में पगला है। लोग बोल रहे थे पहले शहर में मजदूरी का काम करता था लेकिन फिर शहर में किसी महामारी की वजह से गाँव में आया और जब से आया है तभी से पागल है।" कॉन्स्टेबल जयराम ने कहा।
"अच्छा, और बाकी सब?"
"सर महोबा तो शायद खुद अपने आप से ही दुखी है और उन दो हत्याओं के बाद तो गाँव की काफी औरतें उससे चिढ़ी हुई हैं।" कॉन्स्टेबल चौधरी ने कहा।
"तो कहीं से कोई और बात निकली? किसी का कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड मिला?" इंस्पेक्टर ने पूछा।
"गाँव में क्रिमिनल बोलकर कोई नहीं मिलेगा, यही एक पगला है जो इतने सालों बाद आया है। और ये दोनों हत्याएँ पिछले २ महीनों के अंदर हुई है। जबकि आप भी जानते हैं यहाँ मारपीट या तो बहुत जल्दी होगी या तो एकदम नहीं।" कॉन्स्टेबल जयराम ने कहा।
"एक काम करो चौधरी, तुम कपड़े के टुकड़े का पता करो और पांडेय तुम, उन घुंगरूमयी दानों के सेठ का पता करो। जयराम, तुम तालाब पर नज़र जमाए रखना लेकिन किसी उल्टे-सीधे मामले में ना पड़ना, तब तक मैं शहर से इस पगले का इलाज ढूंढता हूँ।"
दिन ढलने की तरफ बढ़ रहा था और ये पूरी टीम भी निकल रही थी अपने मकसद को अंजाम देने।
दिन ढलते का मतलब सिर्फ ये थोड़ी है कि सब समेटना ही है, कभी-कभी एक शुरुआत भी होती है।
शहर पहुँचकर इंस्पेक्टर ने दौड़-भाग कर काफी जानकारी इकट्ठी कर ली थी। तस्वीर और हुलिया के माध्यम से उसने काफी जानकारी और कुछ दस्तावेज ले लिए थे। इधर गाँव में पांडेय और चौधरी कपड़े के टुकड़े का हिस्सा ढूंढ रहे थे जिसके लिए वो दर्जी से लेकर गाँव वालों से भी पूछ रहे थे। इसके साथ वो टूटे हुए एक पैर के चप्पल के हिस्से के मालिक को खोज रहे थे। जयराम, तालाब और उसके आस-पास नज़रें जमाए हुआ था कि ज़रा भी कुछ ऐसा-वैसा दिखे तो एक्शन ले। यहाँ कॉन्स्टेबल्स ने जानकारी काफी ले ली थी और अब इंस्पेक्टर का इंतज़ार कर रहे थे। उसके लौटते ही सबके तेवर बदले हुए थे और काफी चीज़ें परखने के बाद उन्होंने अपना काम शुरू किया। सबसे पहले मंगतू के दरवाजे को लातों से पुचकारा गया। मंगतू माटी ढोने का काम करता था और साथ में सिलाई-बुनाई की चीज़ें भी बेचता था।
"सर, यही है मंगतू जो इस घुंगरूमयी दाने का सेठ है, यही मेले या त्योहारों में कलावा या धागों से सजने-संवरने के सामान बनाता है और बेचता है।" जयराम कॉन्स्टेबल ने कहा।
"बता साले, अभी भी याद नहीं आ रहा कि थाने चलकर ही सब याद करेगा?" कॉन्स्टेबल ने अपना पैर उठा लिया था कि एक लात में ही मंगतू से सच उगलवा लें। लेकिन इंस्पेक्टर ने इशारे से रोका। (क्रमशः)

Hindi Story by Abhilekh Dwivedi : 111750020
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