"अरे पागल, गर्भपात का रिपोर्ट तो डॉक्टर से मिलेगा। ये ज़रूर रेप कर के मारने वाला मामला है। किसी ने अपना काम कर के ठिकाने लगाया होगा।" कॉन्स्टेबल चौधरी ने कहा।
"इतना भी सीधा केस नहीं हो सकता। बहुत क़ायदे से इस हत्या को अंजाम दिया गया है।" इंस्पेक्टर ने कुछ सोचते हुए कहा।
"सर, एक बात और गौर करने वाली है।" कॉन्स्टेबल पांडेय ने कहना जारी रखा, "महोबा रानी पिछले कई सालों से बे-औलाद है और मारी गयी सभी औरतें पेट से थी। हो न हो किसी जलन से किया गया हो?"
"हम्म। हो तो सकता है, शायद इसलिए उसने मारने के बाद तालाब पर जाना छोड़ा होगा। और अगर ऐसा है, तो इन घुंघरू के दानों और फ़टे कपड़े का भी पता करना होगा।" इंस्पेक्टर ने कहा।
"हाँ, कपड़े के हिसाब से लगता है कोई साथ भी था।" कॉन्स्टेबल पांडेय ने कहा।
"हाँ, वैसे भी वो परधान की बीवी है तो गाँव में उनके खिलाफ कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं करेगा। हो सकता है महोबा के साथ सुशांत ने मिलकर कुछ किया हो।" कॉन्स्टेबल जयराम ने कहा।
"हम्म। एक काम करो, इनपर नज़र रखो और पता करो, वो पगला कौन है उनके घर में। पता करो वो वाक़ई में पागल है या इन लोगों ने दया बटोरने के लिए उसे पागल बनाया हुआ है।" इंस्पेक्टर ने कहा।
पांडेय, जयराम निकल गए इसी काम से। इंपेक्टर और कॉन्स्टेबल केस से जुड़ी बाकी चीज़ों पर गौर करने में लगे थे।
अब गाँव का माहौल तो बदल ही गया था। एक दिन जब महोबा तालाब तक पहुँची तो सबका रवैया बदला हुआ था। उसके आने से पहले सभी अपने उसी भीगे और आधे कपड़ों में एक दूसरे के साथ समय बिता रहीं थीं। जैसे ही महोबा करीब पहुँची, बातें शुरू हो गयी।
"चलो-चलो आ गयी है बाँझ, इसके साथ या इसके आस-पास जो भी रहेगा उसकी ज़िन्दगी ज़रूर बर्बाद होगी।" ये बातें भले कोई और किसी और से कह रही थी लेकिन मकसद महोबा को ही सुनाना था।
"और क्या, अब तो लगता है जान लेना भी शुरू कर दिया है… लगता है पूरा डायन ही बन चुकी है। परधान की बीवी नहीं होती तो तब पता चलता।" ये फिर सुनाने के इरादे से जवाबी कारनामा था।
महोबा को सुनाई तो दे ही रहा था। पानी में उतरने से पहले ही उसकी आँखें पानी-पानी हो गयीं थीं।
"हमरा दर्द तुम लोग कभी नहीं समझोगे। अगर तुम सबको यही लगता है कि हमने ही कुछ किया है तो ये लो", कहते हुए महोबा ने अपनी कुल्हाड़ी निकाल ली और सबके सामने आगे करते हुए कहा, "ये लो कुल्हाड़ी और कर दो हमारे टुकड़े।"
कहते हुए वो असहाय-सी वहीं बैठ गयी। कुल्हाड़ी को भी टिका ही दिया था उसने कि कोई तो उठा कर उसका कल्याण करे लेकिन कुल्हाड़ी थी ही बदकिस्मत। किसी ने भी उसे नहीं उठाया। सबने अपना मुँह बनाया और धीरे से चुपचाप अपने-अपने रास्ते निकल गयीं। महोबा को कुल्हाड़ी पर दया आ गयी, उसने उठाकर उसकी धार पर प्यार से हाथ फेरना शुरू कर दिया। (क्रमशः)