सभी प्रबुद्ध साहित्यकारों के सामने समीक्षा हेतु सादर प्रस्तुत हैं, पाँच दोहे। 🙏🙏🙏🙏
अल्पना, अवगाहन, अंबुज, अस्ताचल, अवलंब
1 अल्पना
रंग बिरंगी अल्पना, डाली घर के द्वार।
आगत का स्वागत करे, सुसंस्कृत परिवार।।
2 अवगाहन
जितना अवगाहन करें, उतनी होती खोज।
तभी सफलता है मिले, तन-मन बढ़ती ओज।।
देख सभी हैरान हैं, तालिबान सरकार
जग अवगाहन कर रहा, मानव है लाचार।
3 अंबुज
पोखर में अंबुज खिला, भगे सभी संत्रास ।
मन का पंछी फिर उड़ा, जगी प्रेम की आस।।
4 अस्ताचल
चंदा से कह कर गया, हो गई है अब शाम ।
सूरज अस्ताचल गया, करने को विश्राम।।
5 अवलंब
वृद्धों का अवलंब ही, उसकी है संतान।
आश्रय बस वह चाहता, जब तन से हैरान।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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