05/08/2021
विषय-"सावन का आंगन"
मेरे सावन का आंगन फूलों का झूला हैं,
इसे देखकर मेरा तन-मन डोला हैं,
मेरा दिल खुशी से उछल कर बोला है,
यदि स्वर्ग कहीं हैं
तो यहीं हैं यहीं हैं,
मेरे सावन का आंगन फूलों का झूला हैं,
चंपा, चमेली,मोगरा,
मेरा आंगन फूलों से मघमघता है
नीला, पीला, लाल, सफेद,
गुलाब,के बुटे, गेंद और रातरानी,
की खूश्बु से मेरे सावन का आंगन
बड़ा सुशोभित हो रहा है,
मेरे सावन का आंगन फूलों का झूला हैं,
मेरे सावन के आंगन में झिल
लहराती हुई, बलखाती हुईं,
चंचल सी कन्या सी उछल रहीं हैं,
जो रजनी में बड़ी सुहानी लगती है,
उस पर चंदा की चांदनी चांदी बिखैर रहीं हैं,
इसका सौंदर्य मन लुभा रहा है,
मेरे सावन का आंगन फूलों का झूला हैं,
इस पर बरसती हैं बारिश की बूंदों
जो करिश्मा का कहर ढाती हैं,
धरती दुल्हन की तरह साज़ सजती हैं,
मयूरी अपने नाच दिखाती हैं,
बिजली आकाश में धूम मचाती हैं,
मेघ की अमृत धारा बहती है,
इस मनोरम दृश्य की
शानदार अभिव्यक्ति शृंगार सजाती हैं,
मेरे सावन का आंगन फूलों का झूला हैं।
स्वरचित कविता-डो दमयंती भट्ट।